खुशहाली का गांव - अनुज खरे
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दुख की हैं सौ बस्तियां, इक खुशियों का गांव,
किलकारी में ढूंढ ले, तू ममता की छांव ।
सुख के पीछे भागना, दुख का रोजगार,
चिड़िया के इक दाने में, चाहत का संसार ।
जिंदगी का हो दीया, इंसानियत की बाती,
अच्छाई की लौ यूं दमके, जैसे घर में बूढ़ी दादी ।
पीपल का पत्ता कहीं, बरगद की हो छांव,
नीम झूमे देहरी, खुशहाली का गांव ।
चाचा-चाची, ताई जी, इनका रोज व्यवहार,
खुशहाली के गांव को, इनकी है दरकार ।
बरगद पर पंछी दिखें, तुलसी बिरवा आंगना,
देहरी किलकारी बसे, उसकी है बस कामना ।
बरगद बच्चे और बुजुर्ग, खुशहाली का मेल,
ईर्ष्या -इंसां के मेल से, अकसर ये बेमेल।