तितलियों के लाखों रंग
बूढ़े बरगद की ठंडी छांव ,
लहलहाते खेत जिंदा है..
मेरा गाँव ,
गुनगुनाते भँवरे खिलखिलाती किरण
मन्त्र-मुग्ध बयार कर जाती तन -मन
चिलचिलाती धूप जलते पांव
घने बरगद के नीचे आराम करता गाँव .
सुरमई शाम , बजती घंटियाँ गायों की ,
उड़ती पग धूल छिपती राहों की
जलते चूल्हे ऊंघते बच्चे
तनी चद्दरों मैं सिमटे पाँव
कितने चैन से सोता..
कितने प्रेम से जीता है
आज भी मेरा सुंदर गाँव .....
विजय कुमार पंत